Saturday, October 26, 2019

हे मेरे खुदा !




बेचैन धड़कने जो मेरे 
न पहुँचे पथर कानो तक तेरे, 
हे मेरे खुदा !

ख़ामोश पुकार जो सारे 
लब्ज़ ढूंढे फिर हारे 
और हो दफ़्न बार बार 
कब्र-ए-बेबसी  में मेरे 
सुन मेरे खुदा !

इस बेकसी के अश्क से 
क्यों न भीगे तेरे दामन कभी 
बंजारे को बेमतलब भटकाए यहाँ वहाँ 
क्यों करे खुदसे इतना दूर ,
बता मेरे खुदा !

तेरे सीने में मेरा प्यार 
जो धीरे आहट दे लगातार 
कबतक कर सकेगा नज़रअंदाज  उसे 
हे मेरे खुदा !

तू जो बख्शा हे जूनून ये मेरा 
हार के हज़ार बार हो खड़ा 
न मौत से मिटे, न कुछ खोने का परवाह 

करे सिर्फ बेइंतेहा मुहबत तुझसे 
हे मेरे खुदा !  

--*--

अपने खुदा के तड़प में ,
अभिजीत ॐ 

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उदासी में इंतज़ार





ये कैसी उदासी दिल में हे बसी 
जो मेरे हर साँस से लिपट गयी हे 
रूठी पड़ी हे बे-दिल जिंदगी 
ऊँचे ख्वाबों से बंधी पड़ी हे | 


गैर-यक़ीन से पड़े हर कदम 
जैसे आंधी से टकरा गए है 
न दूर कुछ दिखे, हर चेहरा दिखे धुंदलासा
हर ख्वाब यहाँ बेखबर है |  


फिर कोई दिखादे वो भूले हुए रंग 

जो मेरे ज़ेहन में फीका पड़ा है 
कोई जगा दे हवा में वह खुशबू 
दूर मन से जो उड़ गया है  | 


न जाने कैसा ये फिकर, अनजान अज़ीब सा एक डर 
जिससे पूरा बदन काँप उठा हे  
ऐसा नशा इक छाया, न लगे कोई अपना,पराया
किसी अजनवी का इंतज़ार है ||  


--- * ---
कोई अजनवी का इंतज़ार में,
अभिजीत ॐ  

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The Princess




Like an unpolished diamond,
she strives to shine
A spring of love,
wish she has been mine

A refreshing smile,
that makes dead alive
Her innocent queries
that often arrive

Her compassionate face,
that lits mundane moments
Her priceless glance
reveals a million secrets

Like a god or an angel
she blessed my life,
Like a queen filled a beggar,

With an eternal bliss

After a touch of the princess,
Abhijit Om

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Monday, October 9, 2017

तुम घर चले आना...

तुम घर चले आना...


थका हुआ पैर टूटने से पहले
नंगे पॉव पे मुस्किले चुव ने से पहेले
तना हुआ कमर झुकने से पहले
फूलती हुई साँसे रुकने से पहले
तुम घर चले आना........


अंदर की आवाज़ घुटने से पहेले
रिश्तो का बंधन दुखने से पहेले
माँ की आवाज़ भूलने से पहेले
उमर भर का विश्वास घुलने से पहले
तुम घर चले आना...


करम से शरम आने से पहले
भेदती हुई नज़र झुक ने से पहले 
बेपेरवाह जिंदेगी  रुठ ने से पहेले
अनोखे आदते बिगड़ ने से पहेले
सरारते बचपन के भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...


हू बहू सच जैसा दीखता हुआ झूट बोलने से पहले 
धड़कने तेज होने से पहेले
खुद से धोखा खाने से पहेले
अपनी आत्मा का सौदा करने से पहेले
तुम घर चले आना....


बचा-कुचा ईमान बेचने से पहेले
स्वाभिमान से समझौता करने से पहेले
सब कमाई गिरबी रखने से पहेले
कीमत इंसानियत की लगाने से पहेले
इंसान को दौलत से तोलने से पहेले
तुम घर चले आना....


शाम रात मे समां ने से पहेले
सुबह का सूरज डूबने से पहेले
अंधेरो का नशा चढ़ ने से पहले...
अनिद्रा से आँखे दुखने से पहेले
नींद से बेचैन जागने से पहेले
तुम घर चले आना......


सीने मे आँसू जमने से पहेले,
सपनो की बुनियाद हिलने से पहेले
प्रेमिका से नज़रे चुराने से पहेले
अतीत के यादों में तड़पने से पहेले
आनेवाला पल सताने से पहेले
तुम घर चले आना....


लोभ और लालच तुम्हे निगलने से पहेले
सख्त संकल्प सारे पिघल ने से पहेले
अपनी भूल को भूल जाने से पहेले
ग़लती को दूसरो से छुपाने से पहेले
दुर्वल का मज़ाक बनाने से पहेले
तुम घर चले आना...


सर पे घमंड चढ़ने से पहेले
ज़ुबान पे गुस्सा लाने से पहले
मर्यादा से बाहर बोलने से पहेले
प्रतिशोध के आग में जलने से पहेले
तुम घर आ जाना....


खुदकी ज़ुबान से खुद ही मुकरने से पहेले
ग़लत के सामने झुकने से पहेले
गद्दे को बाप बनाने से पहेले
अपने मैनेजर को मस्का लगाने से पहेले 
तुम घर चले आना....


मंदिर का द्वार भूलने से पहेले
बैश्या का घर ढूंढने ने से पहेले
सराब में गम भुलाने से पहेले
घरवालो की नाक कटाने से पहेले
तुम घर आ जाना......


बालों पे सफेदी मुस्कुराने से पहेले
झुरिया चहेरे पे शर्माने से पहेले
समय से नाता कट ने से पहेले
दाँत की अकड़ टूट ने से पहेले
कमर की घमंड छूट ने से पहेले
तुम घर आ जाना....


दौलत से दिल भरने से पहेले
दुनियादारी से मन उब्बने से पहेले
भोग से बैराग्य आने से पहेले
संसार से सन्यास लेने से पहेले
दबे कुचले प्राणो को भूलने से पहेले
आश्रित का हाथ छोड़ ने पहेले
तुम घर चले आना....



मन मे मलाल होने ने से पहेले
दया मे हिसाब रखने से पहेले
भक्ति को संदेह छूने से पहेले
इस भीड़ मे भगवान को भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...

------*-----


अभिजीत ॐ  

पत्थर



पत्थर

पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
मगर जब आज़माने चले तो कर बैठे एक पत्थर से प्यार


पिघलने को पत्थरअपना अपमान समझा
और अपने अकड़ के साथ खुश रहा......
तब हमें  पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला... 
तब हमें पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला  की प्यार तो बेकार बदनाम हे ... गुनेहगार तो ये पत्थर ही हे....


वो पत्थर फिर कभी ना पिघला..
लैकिन हम नादाँ पिघल गये,  और पिघलते पिघलते एक दिन हम कुछ और बन गये. 
मगर कभी पत्थर ना बने..
मगर कभी पत्थर ना बने..

---*---

अभिजीत ॐ 

बहने दो आज उसे...


बहने दो आज उसे... 

रुख़ हवा का आज बदल ने दो
किस्मत को लकीरे लिखने दो
उसे रोको मत, उससे टोको मत
बस बहने दो उससे बहने दो
बस बहने दो उससे बहने दो


पिघल जाए तो उसे पिघलने दो
ढल जाए जैसे ढल ने दो
बिचरो में क्रांति आने दो
प्राण को प्रचंड होने दो
बड़ा कदम एक लेने दो
जो हो जाए आज होने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
आज बोलने दो उसे बोलने दो
आज बोलने दो उसे बोलने दो


ग़लती भी कभी होने दो
डर को सामने आने दो
गौर से डर को देख भी लो
साथ संघर्ष के जीना सिख भी लो
बिगड़ता हे तो बस बिडगने दो 
सब्र से उसे सुधरने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
बस करने दो उससे करने दो
बस करने दो उससे करने दो


जो अनदेखा हे उसे देख भी लो
अनकहा को बोलना सिख भी लो
नयापन से मूह मोड़ ना लो
अतीत से नाता कभी तोड़ भी लो
ख़ुदको रोको मत, ना रूको मत
अाजमालो बस आजमालो, 
अंजाने को कभी आजमालो


भविष्य में  झांक के कुछ देख भी लो
अतीत से कभी कुछ सिख भी लो
आशा का किरण खिलने दो
बंद दरवाजो को खोलने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
सपने देखने दो उसे देखने दो
सपने देखने दो उसे देखने दो


नये रिस्तो को कभी जोड़ने दो
बँधे हुए डोर खोलने दो
अपनो को पराया होने दो
अजनवी पे भरोसा होने दो
खुद जोड़ो मत, कुछ काटो मत
जिंदेगी को जाल बुनने दो
बस बुनने दो, उसे बुनने दो
जैसा बुनन्ता हे, जाल बुनने  दो


जो गुजर गया उससे गम कैसा
जो मुकर गया उससे क्या आसा
पुराने से जान छूटने दो,
नया सपना एक देखने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
आता हे तो बस आने  दो 
जाता हे तो बस जाने  दो


गिर गिरके उसे चलने दो,
हाथ का सहारा छोड़ने दो
मगर उतावला सा होना मत,
धीरज धरम कभी खोना मत,
कल्ली को हौले से खिलने दो
धीरे धीरे उड़ान भरने दो
उड़ने दो उसे उड़ने दो 
उड़ने दो उसे उड़ने दो


उसे मौन के मन को पढ़ने दो
खामोशी से बाते करने दो
अनसुने को उसे सुनने दो
खुद के आवाज़ का अंदाज़ा होने दो
विश्वास पे भरोसा छाने दो
उसे अंधेरो में चलना सिखने दो
कुछ सीखाना मत, कुछ बताना मत
बस खुद से ही उसे सुनने दो
और खुद से ही उसे सीखने दो


चाहत का बीज को मरने दो
घमंड को चूर होने दो
बैराग्य का ज्वाला जलने दो
बिकारो को भसम होने दो
दुआ का असर चढ़ने दो
बिचारों  में दृष्टि खिलने दो
कुछ नापना मत, कुछ तोलना मत
आज असीम को असीम से जुड़ने दो
पूर्ण को संपूर्ण होने दो....


बहने दो उसे बहने दो .... 
बहने दो उसे बहने दो..... 


रुख़ हवा का आज बदल ने दो
किस्मत को लकीरे लिखने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
बस बेहने दो उसे बेहने  दो
बस बेहने दो उसे बेहने  दो.... 


---*---

अभिजीत ॐ 

अस्थाई

अस्थाई 


थोड़ा नशा उतर गयी
और थोड़ी सी हे बाकी
जाते जाते जो छोड़ गयी
यादें रह गयी बस बाकी

दो दिन पहले सुरू हुआ
और कल ही हो गया ख़तम
कोई उससे रिस्ता कहता
मे कहता उससे जीवन

दो दिन की ही मेहमान हे सारे
बस मौत को भूलगये है
बाहर से कुछ ढूंढ़ते ढूंढ़ते
जैसे जीना भूल गाए हे

कुछ ना रहेगा हमेशा
जो रह जाए उसे ब्रह्म मानो
बस नेक करम कुछ करलो
चाहे पथर या भगवन मानो

---*---

अभिजीत ॐ