ये कैसी उदासी दिल में हे बसी
जो मेरे हर साँस से लिपट गयी हे
रूठी पड़ी हे बे-दिल जिंदगी
ऊँचे ख्वाबों से बंधी पड़ी हे |
गैर-यक़ीन से पड़े हर कदम
जैसे आंधी से टकरा गए है
न दूर कुछ दिखे, हर चेहरा दिखे धुंदलासा
हर ख्वाब यहाँ बेखबर है |
फिर कोई दिखादे वो भूले हुए रंग
जो मेरे ज़ेहन में फीका पड़ा है
कोई जगा दे हवा में वह खुशबू
दूर मन से जो उड़ गया है |
न जाने कैसा ये फिकर, अनजान अज़ीब सा एक डर
जिससे पूरा बदन काँप उठा हे
ऐसा नशा इक छाया, न लगे कोई अपना,पराया
किसी अजनवी का इंतज़ार है ||
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कोई अजनवी का इंतज़ार में,
अभिजीत ॐ
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