Wednesday, October 26, 2016

माया



मत पूछ, हाल-ए-दिल तू मेरा,
एक झलक से उनकी हम बेहाल होएं,
मत पूछआज, वो राज़ है गहरा,
उन बोलती आँखों में, बार बार हम खोएं।

बहता जैसे कोई गम्भीर प्रवाह,
तोड़े जो रिवाजों को, और मर्यादा फांद जाये,
रोक न सके, है ऐसा प्रचण्ड,
लगे आग सा, पर जैसे भाव से भीगा होये।

बिजली जैसी, उनकी चेहरे की चमक,
दाग ना कोई जिसे, कर पाए मलिन,
उनके रूप से विमुग्ध और स्पर्श से मोहित,
फूटे मंद मुस्कान, हो जाऊं ध्यान में लीन।

लय, ताल, छंद से नाचते हों जैसे,
आज चाँद, तारे, गगन और जमीन,
इक अद्धभुत आनंद में लहराता हुआ,
कोई योगी हुआ, जैसे ब्रह्म में विलीन।

ऐसा समोहक बाण है मारा ,
जगाये जो आदिम अरमान सारा,
वैराग्य छूटे , केवल कविता फूटे,
मत पूछ रे पागल, क्या हाल है मेरा,


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माया की उलझन में,
अभिजीत ॐ 

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