जब बुलंद इरादों के कैद को
तोड़े जजबाती बेहकावा,
जब आजाद दिल के धड़कने
शुरू करे गुप्तगू बेजवा,
जब उसूल के पक्के इमारते
जब उसूल के पक्के इमारते
टूटे अज़नबी के एक मुस्कान से,
फिर किस श्याही से लिखुँ जिंदगी
जो सिंदूरी हो ऐसे रंग से।
अँधेरे से डरती हुई ये आंखे
रोशनी से धोखा भी अकसर खाती हे,
जब शोर मचे हो झूट का
सच का गूंज कौन सुन पाता हे।
घने जिंदगी के जाल से
मौत का मातम भी कहाँ दीखता है
आगे प्यास और अरमान के
खुदा कहाँ भला दिखता है।
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अभिजीत ॐ
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