Saturday, October 26, 2019

हे मेरे खुदा !




बेचैन धड़कने जो मेरे 
न पहुँचे पथर कानो तक तेरे, 
हे मेरे खुदा !

ख़ामोश पुकार जो सारे 
लब्ज़ ढूंढे फिर हारे 
और हो दफ़्न बार बार 
कब्र-ए-बेबसी  में मेरे 
सुन मेरे खुदा !

इस बेकसी के अश्क से 
क्यों न भीगे तेरे दामन कभी 
बंजारे को बेमतलब भटकाए यहाँ वहाँ 
क्यों करे खुदसे इतना दूर ,
बता मेरे खुदा !

तेरे सीने में मेरा प्यार 
जो धीरे आहट दे लगातार 
कबतक कर सकेगा नज़रअंदाज  उसे 
हे मेरे खुदा !

तू जो बख्शा हे जूनून ये मेरा 
हार के हज़ार बार हो खड़ा 
न मौत से मिटे, न कुछ खोने का परवाह 

करे सिर्फ बेइंतेहा मुहबत तुझसे 
हे मेरे खुदा !  

--*--

अपने खुदा के तड़प में ,
अभिजीत ॐ 

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