बेचैन धड़कने जो मेरे
न पहुँचे पथर कानो तक तेरे,
हे मेरे खुदा !
ख़ामोश पुकार जो सारे
लब्ज़ ढूंढे फिर हारे
और हो दफ़्न बार बार
कब्र-ए-बेबसी में मेरे
सुन मेरे खुदा !
इस बेकसी के अश्क से
क्यों न भीगे तेरे दामन कभी
बंजारे को बेमतलब भटकाए यहाँ वहाँ
क्यों करे खुदसे इतना दूर ,
बता मेरे खुदा !
तेरे सीने में मेरा प्यार
जो धीरे आहट दे लगातार
कबतक कर सकेगा नज़रअंदाज उसे
हे मेरे खुदा !
तू जो बख्शा हे जूनून ये मेरा
हार के हज़ार बार हो खड़ा
न मौत से मिटे, न कुछ खोने का परवाह
करे सिर्फ बेइंतेहा मुहबत तुझसे
हे मेरे खुदा !
--*--
अपने खुदा के तड़प में ,
अभिजीत ॐ
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