Sunday, October 23, 2016

योगी या दीवाना


योगी या दीवाना 

वो चाहत, जिसे मंजिल पाने का हक़ ना हो,
वो ख़ुशी, जिसे चंद लम्हों तक बस लूटना हो I

वो रास्ता, जिस से कभी कोई मुसाफिर, ना लौटे, 
वो सफर, जिस से दुनियादारी पीछे छूटे I

वो घायल, जिसकी चीख भी केवल मौन हो,
वो पागल, जिसकी हर साँस में केवल प्रेम हो I

वो आंसू, जिसे पलकों तक मना हो आना,
वो मर्यादा, जिसे संभव ना कभी खो पाना I

वो रण में कूद पड़ा और यकीन को ही सच माना
जिसे, ये जमाना, ना कभी समझा, ना पहचाना I

वो अनसुनी कहानी, जिसका लेखक भी है, अनजाना,
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना, 
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना II

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जिसका प्रेम है निराला और संसार से है परे,
चेहरा उसका, पल भर में ही दिल का रिक्त भरे I

जिसकी आवाज अंधेरों को पार करे,
और स्पर्श उसका, सदियों के कष्ट हरे I 

वो खुशबु, जिसकी मिठास ना कोई भूल पाये, 
वो हँसी, जिसमें जमानेंभर के दर्द घुल जाये I

रहा खामोश वो, पर जन्म-मरण के सब राज जाना,
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना, 


कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना II
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 किसी की चाहत में, 
 अभिजीत ॐ


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ये कविता को लिखने का और ब्‍लॉग मे इसे प्रकशित कारने का बहत बड़ा श्रेय अजय चॅहल जी()  को जाता हे. जिनका कलम का ठीकना हे - दास्ताँ-ऐ-दिल

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