योगी या दीवाना |
वो चाहत, जिसे मंजिल पाने का हक़ ना हो,
वो ख़ुशी, जिसे चंद लम्हों तक बस लूटना हो I
वो रास्ता, जिस से कभी कोई मुसाफिर, ना लौटे,
वो सफर, जिस से दुनियादारी पीछे छूटे I
वो घायल, जिसकी चीख भी केवल मौन हो,
वो पागल, जिसकी हर साँस में केवल प्रेम हो I
वो आंसू, जिसे पलकों तक मना हो आना,
वो मर्यादा, जिसे संभव ना कभी खो पाना I
वो रण में कूद पड़ा और यकीन को ही सच माना
जिसे, ये जमाना, ना कभी समझा, ना पहचाना I
वो अनसुनी कहानी, जिसका लेखक भी है, अनजाना,
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना,
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना II
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जिसका प्रेम है निराला और संसार से है परे,
चेहरा उसका, पल भर में ही दिल का रिक्त भरे I
जिसकी आवाज अंधेरों को पार करे,
और स्पर्श उसका, सदियों के कष्ट हरे I
वो खुशबु, जिसकी मिठास ना कोई भूल पाये,
वो हँसी, जिसमें जमानेंभर के दर्द घुल जाये I
रहा खामोश वो, पर जन्म-मरण के सब राज जाना,
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना,
कोई कहे उसे योगी, तो कोई कहे, उसे दीवाना II
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किसी की चाहत में,
अभिजीत ॐ
किसी की चाहत में,
अभिजीत ॐ
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अद्भूत रचना, अभिजीत जी !!
ReplyDeleteDhanyavad Ajay ji!
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