Monday, October 9, 2017

तुम घर चले आना...

तुम घर चले आना...


थका हुआ पैर टूटने से पहले
नंगे पॉव पे मुस्किले चुव ने से पहेले
तना हुआ कमर झुकने से पहले
फूलती हुई साँसे रुकने से पहले
तुम घर चले आना........


अंदर की आवाज़ घुटने से पहेले
रिश्तो का बंधन दुखने से पहेले
माँ की आवाज़ भूलने से पहेले
उमर भर का विश्वास घुलने से पहले
तुम घर चले आना...


करम से शरम आने से पहले
भेदती हुई नज़र झुक ने से पहले 
बेपेरवाह जिंदेगी  रुठ ने से पहेले
अनोखे आदते बिगड़ ने से पहेले
सरारते बचपन के भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...


हू बहू सच जैसा दीखता हुआ झूट बोलने से पहले 
धड़कने तेज होने से पहेले
खुद से धोखा खाने से पहेले
अपनी आत्मा का सौदा करने से पहेले
तुम घर चले आना....


बचा-कुचा ईमान बेचने से पहेले
स्वाभिमान से समझौता करने से पहेले
सब कमाई गिरबी रखने से पहेले
कीमत इंसानियत की लगाने से पहेले
इंसान को दौलत से तोलने से पहेले
तुम घर चले आना....


शाम रात मे समां ने से पहेले
सुबह का सूरज डूबने से पहेले
अंधेरो का नशा चढ़ ने से पहले...
अनिद्रा से आँखे दुखने से पहेले
नींद से बेचैन जागने से पहेले
तुम घर चले आना......


सीने मे आँसू जमने से पहेले,
सपनो की बुनियाद हिलने से पहेले
प्रेमिका से नज़रे चुराने से पहेले
अतीत के यादों में तड़पने से पहेले
आनेवाला पल सताने से पहेले
तुम घर चले आना....


लोभ और लालच तुम्हे निगलने से पहेले
सख्त संकल्प सारे पिघल ने से पहेले
अपनी भूल को भूल जाने से पहेले
ग़लती को दूसरो से छुपाने से पहेले
दुर्वल का मज़ाक बनाने से पहेले
तुम घर चले आना...


सर पे घमंड चढ़ने से पहेले
ज़ुबान पे गुस्सा लाने से पहले
मर्यादा से बाहर बोलने से पहेले
प्रतिशोध के आग में जलने से पहेले
तुम घर आ जाना....


खुदकी ज़ुबान से खुद ही मुकरने से पहेले
ग़लत के सामने झुकने से पहेले
गद्दे को बाप बनाने से पहेले
अपने मैनेजर को मस्का लगाने से पहेले 
तुम घर चले आना....


मंदिर का द्वार भूलने से पहेले
बैश्या का घर ढूंढने ने से पहेले
सराब में गम भुलाने से पहेले
घरवालो की नाक कटाने से पहेले
तुम घर आ जाना......


बालों पे सफेदी मुस्कुराने से पहेले
झुरिया चहेरे पे शर्माने से पहेले
समय से नाता कट ने से पहेले
दाँत की अकड़ टूट ने से पहेले
कमर की घमंड छूट ने से पहेले
तुम घर आ जाना....


दौलत से दिल भरने से पहेले
दुनियादारी से मन उब्बने से पहेले
भोग से बैराग्य आने से पहेले
संसार से सन्यास लेने से पहेले
दबे कुचले प्राणो को भूलने से पहेले
आश्रित का हाथ छोड़ ने पहेले
तुम घर चले आना....



मन मे मलाल होने ने से पहेले
दया मे हिसाब रखने से पहेले
भक्ति को संदेह छूने से पहेले
इस भीड़ मे भगवान को भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...

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अभिजीत ॐ  

पत्थर



पत्थर

पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
मगर जब आज़माने चले तो कर बैठे एक पत्थर से प्यार


पिघलने को पत्थरअपना अपमान समझा
और अपने अकड़ के साथ खुश रहा......
तब हमें  पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला... 
तब हमें पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला  की प्यार तो बेकार बदनाम हे ... गुनेहगार तो ये पत्थर ही हे....


वो पत्थर फिर कभी ना पिघला..
लैकिन हम नादाँ पिघल गये,  और पिघलते पिघलते एक दिन हम कुछ और बन गये. 
मगर कभी पत्थर ना बने..
मगर कभी पत्थर ना बने..

---*---

अभिजीत ॐ 

बहने दो आज उसे...


बहने दो आज उसे... 

रुख़ हवा का आज बदल ने दो
किस्मत को लकीरे लिखने दो
उसे रोको मत, उससे टोको मत
बस बहने दो उससे बहने दो
बस बहने दो उससे बहने दो


पिघल जाए तो उसे पिघलने दो
ढल जाए जैसे ढल ने दो
बिचरो में क्रांति आने दो
प्राण को प्रचंड होने दो
बड़ा कदम एक लेने दो
जो हो जाए आज होने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
आज बोलने दो उसे बोलने दो
आज बोलने दो उसे बोलने दो


ग़लती भी कभी होने दो
डर को सामने आने दो
गौर से डर को देख भी लो
साथ संघर्ष के जीना सिख भी लो
बिगड़ता हे तो बस बिडगने दो 
सब्र से उसे सुधरने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
बस करने दो उससे करने दो
बस करने दो उससे करने दो


जो अनदेखा हे उसे देख भी लो
अनकहा को बोलना सिख भी लो
नयापन से मूह मोड़ ना लो
अतीत से नाता कभी तोड़ भी लो
ख़ुदको रोको मत, ना रूको मत
अाजमालो बस आजमालो, 
अंजाने को कभी आजमालो


भविष्य में  झांक के कुछ देख भी लो
अतीत से कभी कुछ सिख भी लो
आशा का किरण खिलने दो
बंद दरवाजो को खोलने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
सपने देखने दो उसे देखने दो
सपने देखने दो उसे देखने दो


नये रिस्तो को कभी जोड़ने दो
बँधे हुए डोर खोलने दो
अपनो को पराया होने दो
अजनवी पे भरोसा होने दो
खुद जोड़ो मत, कुछ काटो मत
जिंदेगी को जाल बुनने दो
बस बुनने दो, उसे बुनने दो
जैसा बुनन्ता हे, जाल बुनने  दो


जो गुजर गया उससे गम कैसा
जो मुकर गया उससे क्या आसा
पुराने से जान छूटने दो,
नया सपना एक देखने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
आता हे तो बस आने  दो 
जाता हे तो बस जाने  दो


गिर गिरके उसे चलने दो,
हाथ का सहारा छोड़ने दो
मगर उतावला सा होना मत,
धीरज धरम कभी खोना मत,
कल्ली को हौले से खिलने दो
धीरे धीरे उड़ान भरने दो
उड़ने दो उसे उड़ने दो 
उड़ने दो उसे उड़ने दो


उसे मौन के मन को पढ़ने दो
खामोशी से बाते करने दो
अनसुने को उसे सुनने दो
खुद के आवाज़ का अंदाज़ा होने दो
विश्वास पे भरोसा छाने दो
उसे अंधेरो में चलना सिखने दो
कुछ सीखाना मत, कुछ बताना मत
बस खुद से ही उसे सुनने दो
और खुद से ही उसे सीखने दो


चाहत का बीज को मरने दो
घमंड को चूर होने दो
बैराग्य का ज्वाला जलने दो
बिकारो को भसम होने दो
दुआ का असर चढ़ने दो
बिचारों  में दृष्टि खिलने दो
कुछ नापना मत, कुछ तोलना मत
आज असीम को असीम से जुड़ने दो
पूर्ण को संपूर्ण होने दो....


बहने दो उसे बहने दो .... 
बहने दो उसे बहने दो..... 


रुख़ हवा का आज बदल ने दो
किस्मत को लकीरे लिखने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
बस बेहने दो उसे बेहने  दो
बस बेहने दो उसे बेहने  दो.... 


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अभिजीत ॐ 

अस्थाई

अस्थाई 


थोड़ा नशा उतर गयी
और थोड़ी सी हे बाकी
जाते जाते जो छोड़ गयी
यादें रह गयी बस बाकी

दो दिन पहले सुरू हुआ
और कल ही हो गया ख़तम
कोई उससे रिस्ता कहता
मे कहता उससे जीवन

दो दिन की ही मेहमान हे सारे
बस मौत को भूलगये है
बाहर से कुछ ढूंढ़ते ढूंढ़ते
जैसे जीना भूल गाए हे

कुछ ना रहेगा हमेशा
जो रह जाए उसे ब्रह्म मानो
बस नेक करम कुछ करलो
चाहे पथर या भगवन मानो

---*---

अभिजीत ॐ 

पुनर्जीवन

पुनर्जीवन


टूट गया वो टूट गया
जैसे वक़्त हाथ से छूट गया
फिर हार गया अपने मन से वो
जैसे खुदके रूह खुदी से रूठ गया

फिर आया पतझड़ हुआ सब बेरंग
वापस आया सन्नाटा मे हुआ निसंग 
मे जिससे डरताथा फिर वही हुआ
थोड़ा जगा मगर फिर सो गया

टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया

लगा ये जग निरर्थक और ये जीवन ब्यर्थ 
जैसे कोई ना अपना, सिर्फ जिंदा हे स्वार्थ 
जैसे घुटन मे जिया फिर मर गया
ना पाया समंदर, प्यासा लौट गया

टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया

मगर एक दिन जब सूरज उगा
खिली जिंदेगी का फूल और एक उम्मीद जगा
मर मर के जीना जैसे सिख लिया 
अतीत के नींद से भविष्य जाग गया

ना लगे असंभव, असाध्या साध दिया
खुद खड़ा हुआ सबको जिंदा किया 
टूटा मगर फिर बन गया ..... 
मानो तकदीर खुद से जैसे लिख दिय

---*---

अभिजीत ॐ 

सहेलादे ज़रा प्यार से




सहेलादे ज़रा प्यार से

सदियों से उसका मन हे घायल
सहेलादे ज़रा प्यार से
उससे बदल ने की मत कर जल्दी
समझ ने दे आराम से

बुलबाने की उम्मीद रखने से पहेले
ज़रा बुदबुदाने दे उसे 
भले ना समझ पर सबर से सुन ले
और सहेलादे ज़रा प्यार से

थक जाए जब वो, उसे बाहों मे लेले
सुला दे लोरी कोई गुनगुनाके
वो आँखे जब खोले तू मुस्कुरादे 
और सहेलादे ज़रा प्यार से

वो ज़िद्द पकड़ ले तो धीरज खो मत देना
सुलझा देना ज़रा जतन से
वो घायल ज़रूर हे, पर दिल से हे राजा
बस सहेलादे उसे प्यार से

तन से हे कमजोर और मन से हे बिखरा
रोने दे आज उसे जी भरके
रोते रोते जब घुटन हो उसे
सहेलादे उसे प्यार से

तू रो सके तो उसके साथ मे रोले
मन तेरा भी हल्का हो जाए
तू समझ सके तो, गाँठ सहज से खोले
और वो गोद मे तेरे सो जाए


तेज दौड़ ने की सलाह देने से पहेले
देख खुद दौड़ मे तू क्या खोया हे
सदियो से प्यासा, पूरा होने को आया
जागा मत, वो हाल मे ही अभी सोया हे

जिंदगी भर था वो घुटन मे जिया
घुट घुट कर कबसे चल दिया
आज उससे गहरा साँस भरने दे
जितना करना था वो बस कर लिया


आज हे नाज़ुक, कल सख्त हो जाए
बस दुआ का असर होने दे
पैर लड़खड़ाए पर कोशिश हे जारी
एक बार बस उससे चलने दे


बदल ने की उसे मत कर जल्दी
समझ ने दे आराम से
सदियों  से उसका मन हे घायल
सहेलादे ज़रा प्यार से

---*---

अभिजीत ॐ