अस्थाई
थोड़ा नशा उतर गयी
और थोड़ी सी हे बाकी
जाते जाते जो छोड़ गयी
यादें रह गयी बस बाकी
दो दिन पहले सुरू हुआ
और कल ही हो गया ख़तम
कोई उससे रिस्ता कहता
मे कहता उससे जीवन
दो दिन की ही मेहमान हे सारे
बस मौत को भूलगये है
बाहर से कुछ ढूंढ़ते ढूंढ़ते
जैसे जीना भूल गाए हे
कुछ ना रहेगा हमेशा
जो रह जाए उसे ब्रह्म मानो
बस नेक करम कुछ करलो
चाहे पथर या भगवन मानो
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अभिजीत ॐ
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