Monday, October 9, 2017

पुनर्जीवन

पुनर्जीवन


टूट गया वो टूट गया
जैसे वक़्त हाथ से छूट गया
फिर हार गया अपने मन से वो
जैसे खुदके रूह खुदी से रूठ गया

फिर आया पतझड़ हुआ सब बेरंग
वापस आया सन्नाटा मे हुआ निसंग 
मे जिससे डरताथा फिर वही हुआ
थोड़ा जगा मगर फिर सो गया

टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया

लगा ये जग निरर्थक और ये जीवन ब्यर्थ 
जैसे कोई ना अपना, सिर्फ जिंदा हे स्वार्थ 
जैसे घुटन मे जिया फिर मर गया
ना पाया समंदर, प्यासा लौट गया

टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया

मगर एक दिन जब सूरज उगा
खिली जिंदेगी का फूल और एक उम्मीद जगा
मर मर के जीना जैसे सिख लिया 
अतीत के नींद से भविष्य जाग गया

ना लगे असंभव, असाध्या साध दिया
खुद खड़ा हुआ सबको जिंदा किया 
टूटा मगर फिर बन गया ..... 
मानो तकदीर खुद से जैसे लिख दिय

---*---

अभिजीत ॐ 

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