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पुनर्जीवन |
टूट गया वो टूट गया
जैसे वक़्त हाथ से छूट गया
फिर हार गया अपने मन से वो
जैसे खुदके रूह खुदी से रूठ गया
फिर आया पतझड़ हुआ सब बेरंग
वापस आया सन्नाटा मे हुआ निसंग
मे जिससे डरताथा फिर वही हुआ
थोड़ा जगा मगर फिर सो गया
टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया
लगा ये जग निरर्थक और ये जीवन ब्यर्थ
जैसे कोई ना अपना, सिर्फ जिंदा हे स्वार्थ
जैसे घुटन मे जिया फिर मर गया
ना पाया समंदर, प्यासा लौट गया
टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया
मगर एक दिन जब सूरज उगा
खिली जिंदेगी का फूल और एक उम्मीद जगा
मर मर के जीना जैसे सिख लिया
अतीत के नींद से भविष्य जाग गया
ना लगे असंभव, असाध्या साध दिया
खुद खड़ा हुआ सबको जिंदा किया
टूटा मगर फिर बन गया .....
मानो तकदीर खुद से जैसे लिख दिय
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अभिजीत ॐ
अभिजीत ॐ
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