Wednesday, February 19, 2020

अंधे अरमान


जब बुलंद इरादों के कैद को 
तोड़े जजबाती बेहकावा,
जब आजाद दिल के धड़कने 
शुरू करे गुप्तगू बेजवा,
जब उसूल के पक्के इमारते 
टूटे अज़नबी के एक मुस्कान से,
फिर किस श्याही से लिखुँ  जिंदगी 
जो सिंदूरी हो ऐसे रंग से।   

अँधेरे से डरती  हुई  ये आंखे  
रोशनी से धोखा भी  अकसर खाती हे,
जब शोर मचे हो झूट का 
सच का गूंज कौन सुन पाता  हे।
घने जिंदगी के जाल से 
मौत का मातम भी कहाँ दीखता है 
आगे प्यास और अरमान के
खुदा कहाँ भला दिखता है। 

--*--

अभिजीत ॐ 

To subscribe to the blog by email, please refer to the top-right side of the blog (just above the 'Total Pageviews' gadget).

The great witness






Nothing to create and nothing to raze
Never intercede and nothing to change
Witness the play as if an uncritical new eye
Accept this life, let it flow and fly

Untie the knot, see through the surface
Connect to the source the ultimate oneness
For what to hurry, if no notion of time
For why to worry, if no "I", no "Mine"

It is great to exist, it is a wonderful life
It is the sketch you paint, and the grace that shines!

- Abhijit Om

To subscribe to the blog by email, please refer to the top-right side of the blog (just above the 'Total Pageviews' gadget).

Saturday, October 26, 2019

हे मेरे खुदा !




बेचैन धड़कने जो मेरे 
न पहुँचे पथर कानो तक तेरे, 
हे मेरे खुदा !

ख़ामोश पुकार जो सारे 
लब्ज़ ढूंढे फिर हारे 
और हो दफ़्न बार बार 
कब्र-ए-बेबसी  में मेरे 
सुन मेरे खुदा !

इस बेकसी के अश्क से 
क्यों न भीगे तेरे दामन कभी 
बंजारे को बेमतलब भटकाए यहाँ वहाँ 
क्यों करे खुदसे इतना दूर ,
बता मेरे खुदा !

तेरे सीने में मेरा प्यार 
जो धीरे आहट दे लगातार 
कबतक कर सकेगा नज़रअंदाज  उसे 
हे मेरे खुदा !

तू जो बख्शा हे जूनून ये मेरा 
हार के हज़ार बार हो खड़ा 
न मौत से मिटे, न कुछ खोने का परवाह 

करे सिर्फ बेइंतेहा मुहबत तुझसे 
हे मेरे खुदा !  

--*--

अपने खुदा के तड़प में ,
अभिजीत ॐ 

To subscribe to the blog by email, please refer to the top-right side of the blog (just above the 'Total Pageviews' gadget).

उदासी में इंतज़ार





ये कैसी उदासी दिल में हे बसी 
जो मेरे हर साँस से लिपट गयी हे 
रूठी पड़ी हे बे-दिल जिंदगी 
ऊँचे ख्वाबों से बंधी पड़ी हे | 


गैर-यक़ीन से पड़े हर कदम 
जैसे आंधी से टकरा गए है 
न दूर कुछ दिखे, हर चेहरा दिखे धुंदलासा
हर ख्वाब यहाँ बेखबर है |  


फिर कोई दिखादे वो भूले हुए रंग 

जो मेरे ज़ेहन में फीका पड़ा है 
कोई जगा दे हवा में वह खुशबू 
दूर मन से जो उड़ गया है  | 


न जाने कैसा ये फिकर, अनजान अज़ीब सा एक डर 
जिससे पूरा बदन काँप उठा हे  
ऐसा नशा इक छाया, न लगे कोई अपना,पराया
किसी अजनवी का इंतज़ार है ||  


--- * ---
कोई अजनवी का इंतज़ार में,
अभिजीत ॐ  

To subscribe to the blog by email, please refer to the top-right side of the blog (just above the 'Total Pageviews' gadget).

The Princess




Like an unpolished diamond,
she strives to shine
A spring of love,
wish she has been mine

A refreshing smile,
that makes dead alive
Her innocent queries
that often arrive

Her compassionate face,
that lits mundane moments
Her priceless glance
reveals a million secrets

Like a god or an angel
she blessed my life,
Like a queen filled a beggar,

With an eternal bliss

After a touch of the princess,
Abhijit Om

To subscribe to the blog by email, please refer to the top-right side of the blog (just above the 'Total Pageviews' gadget).


Monday, October 9, 2017

तुम घर चले आना...

तुम घर चले आना...


थका हुआ पैर टूटने से पहले
नंगे पॉव पे मुस्किले चुव ने से पहेले
तना हुआ कमर झुकने से पहले
फूलती हुई साँसे रुकने से पहले
तुम घर चले आना........


अंदर की आवाज़ घुटने से पहेले
रिश्तो का बंधन दुखने से पहेले
माँ की आवाज़ भूलने से पहेले
उमर भर का विश्वास घुलने से पहले
तुम घर चले आना...


करम से शरम आने से पहले
भेदती हुई नज़र झुक ने से पहले 
बेपेरवाह जिंदेगी  रुठ ने से पहेले
अनोखे आदते बिगड़ ने से पहेले
सरारते बचपन के भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...


हू बहू सच जैसा दीखता हुआ झूट बोलने से पहले 
धड़कने तेज होने से पहेले
खुद से धोखा खाने से पहेले
अपनी आत्मा का सौदा करने से पहेले
तुम घर चले आना....


बचा-कुचा ईमान बेचने से पहेले
स्वाभिमान से समझौता करने से पहेले
सब कमाई गिरबी रखने से पहेले
कीमत इंसानियत की लगाने से पहेले
इंसान को दौलत से तोलने से पहेले
तुम घर चले आना....


शाम रात मे समां ने से पहेले
सुबह का सूरज डूबने से पहेले
अंधेरो का नशा चढ़ ने से पहले...
अनिद्रा से आँखे दुखने से पहेले
नींद से बेचैन जागने से पहेले
तुम घर चले आना......


सीने मे आँसू जमने से पहेले,
सपनो की बुनियाद हिलने से पहेले
प्रेमिका से नज़रे चुराने से पहेले
अतीत के यादों में तड़पने से पहेले
आनेवाला पल सताने से पहेले
तुम घर चले आना....


लोभ और लालच तुम्हे निगलने से पहेले
सख्त संकल्प सारे पिघल ने से पहेले
अपनी भूल को भूल जाने से पहेले
ग़लती को दूसरो से छुपाने से पहेले
दुर्वल का मज़ाक बनाने से पहेले
तुम घर चले आना...


सर पे घमंड चढ़ने से पहेले
ज़ुबान पे गुस्सा लाने से पहले
मर्यादा से बाहर बोलने से पहेले
प्रतिशोध के आग में जलने से पहेले
तुम घर आ जाना....


खुदकी ज़ुबान से खुद ही मुकरने से पहेले
ग़लत के सामने झुकने से पहेले
गद्दे को बाप बनाने से पहेले
अपने मैनेजर को मस्का लगाने से पहेले 
तुम घर चले आना....


मंदिर का द्वार भूलने से पहेले
बैश्या का घर ढूंढने ने से पहेले
सराब में गम भुलाने से पहेले
घरवालो की नाक कटाने से पहेले
तुम घर आ जाना......


बालों पे सफेदी मुस्कुराने से पहेले
झुरिया चहेरे पे शर्माने से पहेले
समय से नाता कट ने से पहेले
दाँत की अकड़ टूट ने से पहेले
कमर की घमंड छूट ने से पहेले
तुम घर आ जाना....


दौलत से दिल भरने से पहेले
दुनियादारी से मन उब्बने से पहेले
भोग से बैराग्य आने से पहेले
संसार से सन्यास लेने से पहेले
दबे कुचले प्राणो को भूलने से पहेले
आश्रित का हाथ छोड़ ने पहेले
तुम घर चले आना....



मन मे मलाल होने ने से पहेले
दया मे हिसाब रखने से पहेले
भक्ति को संदेह छूने से पहेले
इस भीड़ मे भगवान को भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...

------*-----


अभिजीत ॐ  

पत्थर



पत्थर

पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
मगर जब आज़माने चले तो कर बैठे एक पत्थर से प्यार


पिघलने को पत्थरअपना अपमान समझा
और अपने अकड़ के साथ खुश रहा......
तब हमें  पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला... 
तब हमें पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला  की प्यार तो बेकार बदनाम हे ... गुनेहगार तो ये पत्थर ही हे....


वो पत्थर फिर कभी ना पिघला..
लैकिन हम नादाँ पिघल गये,  और पिघलते पिघलते एक दिन हम कुछ और बन गये. 
मगर कभी पत्थर ना बने..
मगर कभी पत्थर ना बने..

---*---

अभिजीत ॐ