Thursday, April 23, 2020

ताला






बंद हूँ मैं कुछ राज लिए
यादों  के महफिल के साज लिए
हर दस्तक को ना पहचानता हूँ 
पिया के कदमो के आहट को जानता हूँ

 मैं तो अब उनके ही छूने से खोलूंगा
बस उनके लबों से ही बोलूंगा
वरना ताला संकल्प को अटूट रहने दो 
युहीं वीरानी में खामोश जलने दो 

लौटने का वादा किया हे वो आएगी 
सदियों से कैद रूह मोक्ष पायेगी 

बंद हूँ मैं कुछ राज लिए..... 
अतीत के यादों के ताज़ लिए......    

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अभिजीत ॐ


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