Sunday, April 26, 2020

मृत्यु




मृत्यु 

बज्रपात या बिस्फोट नहीं ये मृत्यु का घोर दस्तक है 
ये कोई माया की परछाई नहीं, स्वयं काल का प्राकट्य है। 

तोड़ मोह निद्रा संसार बंधन 
ये कुटुंब का है क्षणिक क्रंदन 
देख गल रहा तेरा पिंड पड़ा 
दरबार पे सज्ज यमराज खड़ा 

लम्बा यात्रा है, मत कर बिलम्ब 
गांठो को खोल, होचुका युद्ध प्रारम्भ
बिगुल उसी युद्ध का अब बज रहा 
नाद नबनिर्माण का अब गूंज रहा
उस इंगित को उपेक्षित कर मत 
प्यास प्रतीक्षा में निरर्थक जल मत

चार कन्धे पे उठी तेरी अर्थी देख
चार अंगो से तेरी किया कृति देख
मुठी मुठी खील सिक्को का छिड़क देख 
बुरे भले हर कर्मो का हिसाब देख

उम्र भर की जमा पूंजी तू ले ना सका
तेरी  कोई नाम काम अब आ ना सका
झूठा घमंड रॉक रॉक उड़ गया
बदन मखमल अनल में पिघल गया

तेरी प्रेमिका परिजन छूटे चले
याद में रोये दो दिन फिर निकल पड़े 
देख तेरा रिक्त स्तान शीघ्र भर रहा 
न कोई बेबदल या अनिबार्य यहाँ 

नियति का कराल अट्टहास्य देख 
मन दर्पण में झूठा प्रतिबिम्ब देख 
माता पिता भाई बंधू पुत्री पुत्र 
सबकी काया माया का बुलबुला मात्र

अब तू अछूत अबांछित ये मान ले
अपना नया दिशा ठिकाना ढूंढ ले
तू अब मिट चूका यही सत्य है  
जगत अनित्य हे यही सत्य है
राम नाम ही एक मात्र सत्य है
मृत्यु सत्रु नहीं व भी सत्य है

बज्रपात या बिस्फोट नहीं ये मृत्यु का घोर दस्तक है 
ये कोई माया की परछाई नहीं, स्वयं काल का प्राकट्य है.... 

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जय महाकाल
जय जय महाकाली
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अभिजीत ॐ

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