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पागल |
कितने आसानी से कह दिआ तूने पागल मुझे,
जो उम्रभर कभी मान न पाई मेरी माँ,
कितने जल्दी जान लिआ तुमने, ओ समझदार! ||
मेरी अतीत से अपरिचित, ओ अजनवी,
अश्क ( meaning आँसू) से अज़ान तो तुम भी नही,
फिर क्यूँ ना लगाते अंदाज़ा मेरे दर्द का,
अक़ल और अहसास मे येहि तो अंतर हे ,
क्यूँ ना मिटा देते इस फ़ासले को ||
पागल तो पूरी दुनिया हे, देखो!
सब खुदके पागलपन मे मशगूल
कोई पागल बनाने मे मशगूल
और कोई किसे पागल प्रमाण करने मे..
बस सबके प्रवृति अलग अलग...
पागल होने का फक्र तो पल मे पिघल चुका हे मेरा, तुम्हारी परछाई मे ||
मे तो बस पागल ही ठीक हूँ,
ना बनना मुझे ज्ञानी, ना देना उसका प्रमाण,
ना ढोंग के घुटन मे जीना, ना मुझे उच्छा उड़ना तुम्हारे कपटी नजरो मे,
मुझे तो बस जिंदा रखना हे जंग जिंदेगी की एक जुनून के सहारे ||
सच्च पुच्छे तो, पागल के पदबी से प्यार हो गया हो जैसे
घने गहेरे से हे इससे रिस्ते,
ये पदबी पहेले पाया प्रेमिका के पैग़ाम मे,
फिर सुना समाज के संबोधन मे,
अब तो सुनता हूँ सारा संसार से मे "पागल",
पर परवाह नही....पर परवाह नही....
सच पूछो तो, इस पागलपन के सहारे हे मेरी जिंदेगी,
इसके सिवा कुछ भी नही...
इसके सिवा कुछ भी नही... ||
सही पहचाना हे तूने मुझे, ओ समझदार......
पागल ही परिभासा हे मेरा....
पागल ही पहचान हे मेरा.... ||