Sunday, December 6, 2020

Go Easy!


 


No matter how hard it seems,

life finds a way through!

Not that all will be fixed and green 

but you learn,

it's OK to be flawed and proud, 

in the great schemes of things.


No one carved the rock beds for rivers

No one did cast the mountains either

They all found their ways to flow and rise

You too will get through

That's how 'The Greats' led their life


It's not wise to clear every thorn on the way,

better be on shoes,

Cloud won't take the shapes you desire

but you can enjoy as they play on the blues


In the foreign world, you've landed,

where all seem odd and weird

Keep looking at the unknown symbols,

 till you get them or remember


Till the strange becomes standard,

just bear a little more,

New ways would be dawned on you soon,

Then the world would listen when you share! 


Abhijit Om

---*---


Sunday, April 26, 2020

मृत्यु




मृत्यु 

बज्रपात या बिस्फोट नहीं ये मृत्यु का घोर दस्तक है 
ये कोई माया की परछाई नहीं, स्वयं काल का प्राकट्य है। 

तोड़ मोह निद्रा संसार बंधन 
ये कुटुंब का है क्षणिक क्रंदन 
देख गल रहा तेरा पिंड पड़ा 
दरबार पे सज्ज यमराज खड़ा 

लम्बा यात्रा है, मत कर बिलम्ब 
गांठो को खोल, होचुका युद्ध प्रारम्भ
बिगुल उसी युद्ध का अब बज रहा 
नाद नबनिर्माण का अब गूंज रहा
उस इंगित को उपेक्षित कर मत 
प्यास प्रतीक्षा में निरर्थक जल मत

चार कन्धे पे उठी तेरी अर्थी देख
चार अंगो से तेरी किया कृति देख
मुठी मुठी खील सिक्को का छिड़क देख 
बुरे भले हर कर्मो का हिसाब देख

उम्र भर की जमा पूंजी तू ले ना सका
तेरी  कोई नाम काम अब आ ना सका
झूठा घमंड रॉक रॉक उड़ गया
बदन मखमल अनल में पिघल गया

तेरी प्रेमिका परिजन छूटे चले
याद में रोये दो दिन फिर निकल पड़े 
देख तेरा रिक्त स्तान शीघ्र भर रहा 
न कोई बेबदल या अनिबार्य यहाँ 

नियति का कराल अट्टहास्य देख 
मन दर्पण में झूठा प्रतिबिम्ब देख 
माता पिता भाई बंधू पुत्री पुत्र 
सबकी काया माया का बुलबुला मात्र

अब तू अछूत अबांछित ये मान ले
अपना नया दिशा ठिकाना ढूंढ ले
तू अब मिट चूका यही सत्य है  
जगत अनित्य हे यही सत्य है
राम नाम ही एक मात्र सत्य है
मृत्यु सत्रु नहीं व भी सत्य है

बज्रपात या बिस्फोट नहीं ये मृत्यु का घोर दस्तक है 
ये कोई माया की परछाई नहीं, स्वयं काल का प्राकट्य है.... 

--*--
जय महाकाल
जय जय महाकाली
--*--
अभिजीत ॐ

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Thursday, April 23, 2020

ताला






बंद हूँ मैं कुछ राज लिए
यादों  के महफिल के साज लिए
हर दस्तक को ना पहचानता हूँ 
पिया के कदमो के आहट को जानता हूँ

 मैं तो अब उनके ही छूने से खोलूंगा
बस उनके लबों से ही बोलूंगा
वरना ताला संकल्प को अटूट रहने दो 
युहीं वीरानी में खामोश जलने दो 

लौटने का वादा किया हे वो आएगी 
सदियों से कैद रूह मोक्ष पायेगी 

बंद हूँ मैं कुछ राज लिए..... 
अतीत के यादों के ताज़ लिए......    

----*----

अभिजीत ॐ


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Tuesday, April 21, 2020

मेरी रानी




तेरी उलझे हुए जुल्फों को आओ सुलझा दूँ, मेरी रानी
जज्बातों की आंधी को आओ थाम लूँ, मेरी रानी 
तेरी मुरझाई सी होंठों को आज फिर से जिन्दा करदु में 
तेरी नमी भरी आँखों में चिंगारी जगादु मेरी रानी।

आओ ऐसी कहानी सुनाऊ में, की बचपन की सैर हो जाए 
आओ ऐसा मल्हार गाऊं में, श्रांत सरीर नींद में सो जाए
मेरे कंधे में सर रखदो तुम, हर क्लेश पिघलादूँ, मेरी रानी 
सारे गुनाह अपने सर लेजाऊं, हर लानत मिटादूँ मेरी रानी। 


-----*-----

     अभिजीत  ॐ    

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Monday, April 20, 2020

क्यों न मिली मुझे जुगनू कभी



क्यों न मिली मुझे जुगनू कभी 

अँधेरा ही अँधेरा था 
जैसे निगल के ये सारा जहाँ को
वो निश्चल निशब्द खड़ा था। 

ऐसी होती थी वहां रातें काली 
जैसे सदींयो से न हो कोई लौ जली 
हर वजूद वहां मिट जाता था
कभी उजाला नसीब नहीं होता था। 

एक दिन उस अंधेर की वीरानी को 
बेख्वाप जुगनू एक छेड़ जाती हे
उसके गहरे बंजर छाती पर
ख्वाब कुछ बुन जाती हे। 

नज़रे उसके उस चमक से भ्रमित
जुगनू की पीछा करती हे 
करके हसरतें बुंलद उसके 
हाथ जूनून से आगे बढ़ती हे। 

लगता हे जैसे छू लिया हो
पर बदनसीब धोखा खता हे 
कम्भख्त बौने की बढ़ती हथेली
क्या चुम्मा चाँद से ले पता हे।

तक़दीर का ये गंदे ताने पर
व बैठ सोचने लग जाता हे
जुगुनू को पाने जान दे दे या
इरादा कुदरत का कुछ दूसरा हे?

ये भीषण घना अँधेरा 
क्या जुगुनू के माला से टल जायेगा?
मेरे मन की ये क़दीम खालीपन
क्या तुच्छ चमक से भर पायेगा?

तलब के तमाम तिलिस्म में
तबाह जिंदगी हो जाती हे
पर बेग़र्ज़ इरादों के कदमो पे
पूरी कायनात झुक जाती हे 

जब जागे उम्मीदों के अमर पंख 
प्राण में हज़ारों दिये जलने लगते हे 
शर्माते हे ये जुगुनू सब, जब 
बदन पथर से आग निकलती हे

"क्यों न मिली मुझे जुगुनू कभी?"
सवाल मन में जब ये उभरता हे
आग से उजिआरा महफिल मेरा
मेरे तरफ मुड़के मुस्कराता हे। 

तभी न मिली मुझे जुगनू कभी ....!

-------*------

अभिजीत ॐ       

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Sunday, March 29, 2020

तांडव गीत


तांडव गीत 
क्यों रग रग कण कण नाचे नाचे आज 
तन बदन काँपे, डोले अंग अंग मोरा
मचले मेरे खून बूंद बूंद
काल ठहरा हुआ और मन हे मौन 
मेरे अंदर अंदर ये जगाहे कौन।


नाचे कोटी सूर्य, नाचे ये जड़ जगत
नाचे पृथ्वी पाताल, नाचे अन्तरिक्ष
नाचे भूत, प्रेत, गण, और राक्षस
नाचे हर पशु प्राणी नटराज साक्ष्यात।


गूंजे अनहद नाद, प्राण हुआ प्रबल 
मन में महारुद्र जब जागे प्रखर
सुभे डम डम 
डम डम डम्बरू के तार
जन्मे बीज़ महामन्त्र खिले सारा संसार    

---*---
अभिजीत ॐ 
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Saturday, March 28, 2020

माई मेरी





माई मेरी


हर मोड मेरे सफर का गुजरे तेरी सूफियाना नगरी से
तेरी झलक की एक ज़ाहीर पे मर मिटे हर जज़्बा जॉन के।


प्यासे नज़रे मेरे जब तरसे और बरसे घनघोर तन्हाई
एक बार मिलने आ जाना तेरा रास्ता देखूँगा मेरी माई।


जब जॉन जिस्म से हो जुदा जुबां पे हो सिर्फ तेरा नाम
मन की निगाहे हो तेरे चेहरे पे और मेरी रूह चल पडे तेरा धाम।



बूंद बूंद मेरे हर आंसू में हो लपेटा हुआ बस यादें तेरी
गोद में मुझे समां लेना तू, यही अर्ज़ी हे माई मेरी।



---*---
अभिजीत ॐ 

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Wednesday, February 19, 2020

अंधे अरमान


जब बुलंद इरादों के कैद को 
तोड़े जजबाती बेहकावा,
जब आजाद दिल के धड़कने 
शुरू करे गुप्तगू बेजवा,
जब उसूल के पक्के इमारते 
टूटे अज़नबी के एक मुस्कान से,
फिर किस श्याही से लिखुँ  जिंदगी 
जो सिंदूरी हो ऐसे रंग से।   

अँधेरे से डरती  हुई  ये आंखे  
रोशनी से धोखा भी  अकसर खाती हे,
जब शोर मचे हो झूट का 
सच का गूंज कौन सुन पाता  हे।
घने जिंदगी के जाल से 
मौत का मातम भी कहाँ दीखता है 
आगे प्यास और अरमान के
खुदा कहाँ भला दिखता है। 

--*--

अभिजीत ॐ 

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The great witness






Nothing to create and nothing to raze
Never intercede and nothing to change
Witness the play as if an uncritical new eye
Accept this life, let it flow and fly

Untie the knot, see through the surface
Connect to the source the ultimate oneness
For what to hurry, if no notion of time
For why to worry, if no "I", no "Mine"

It is great to exist, it is a wonderful life
It is the sketch you paint, and the grace that shines!

- Abhijit Om

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Saturday, October 26, 2019

हे मेरे खुदा !




बेचैन धड़कने जो मेरे 
न पहुँचे पथर कानो तक तेरे, 
हे मेरे खुदा !

ख़ामोश पुकार जो सारे 
लब्ज़ ढूंढे फिर हारे 
और हो दफ़्न बार बार 
कब्र-ए-बेबसी  में मेरे 
सुन मेरे खुदा !

इस बेकसी के अश्क से 
क्यों न भीगे तेरे दामन कभी 
बंजारे को बेमतलब भटकाए यहाँ वहाँ 
क्यों करे खुदसे इतना दूर ,
बता मेरे खुदा !

तेरे सीने में मेरा प्यार 
जो धीरे आहट दे लगातार 
कबतक कर सकेगा नज़रअंदाज  उसे 
हे मेरे खुदा !

तू जो बख्शा हे जूनून ये मेरा 
हार के हज़ार बार हो खड़ा 
न मौत से मिटे, न कुछ खोने का परवाह 

करे सिर्फ बेइंतेहा मुहबत तुझसे 
हे मेरे खुदा !  

--*--

अपने खुदा के तड़प में ,
अभिजीत ॐ 

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उदासी में इंतज़ार





ये कैसी उदासी दिल में हे बसी 
जो मेरे हर साँस से लिपट गयी हे 
रूठी पड़ी हे बे-दिल जिंदगी 
ऊँचे ख्वाबों से बंधी पड़ी हे | 


गैर-यक़ीन से पड़े हर कदम 
जैसे आंधी से टकरा गए है 
न दूर कुछ दिखे, हर चेहरा दिखे धुंदलासा
हर ख्वाब यहाँ बेखबर है |  


फिर कोई दिखादे वो भूले हुए रंग 

जो मेरे ज़ेहन में फीका पड़ा है 
कोई जगा दे हवा में वह खुशबू 
दूर मन से जो उड़ गया है  | 


न जाने कैसा ये फिकर, अनजान अज़ीब सा एक डर 
जिससे पूरा बदन काँप उठा हे  
ऐसा नशा इक छाया, न लगे कोई अपना,पराया
किसी अजनवी का इंतज़ार है ||  


--- * ---
कोई अजनवी का इंतज़ार में,
अभिजीत ॐ  

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The Princess




Like an unpolished diamond,
she strives to shine
A spring of love,
wish she has been mine

A refreshing smile,
that makes dead alive
Her innocent queries
that often arrive

Her compassionate face,
that lits mundane moments
Her priceless glance
reveals a million secrets

Like a god or an angel
she blessed my life,
Like a queen filled a beggar,

With an eternal bliss

After a touch of the princess,
Abhijit Om

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Monday, October 9, 2017

तुम घर चले आना...

तुम घर चले आना...


थका हुआ पैर टूटने से पहले
नंगे पॉव पे मुस्किले चुव ने से पहेले
तना हुआ कमर झुकने से पहले
फूलती हुई साँसे रुकने से पहले
तुम घर चले आना........


अंदर की आवाज़ घुटने से पहेले
रिश्तो का बंधन दुखने से पहेले
माँ की आवाज़ भूलने से पहेले
उमर भर का विश्वास घुलने से पहले
तुम घर चले आना...


करम से शरम आने से पहले
भेदती हुई नज़र झुक ने से पहले 
बेपेरवाह जिंदेगी  रुठ ने से पहेले
अनोखे आदते बिगड़ ने से पहेले
सरारते बचपन के भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...


हू बहू सच जैसा दीखता हुआ झूट बोलने से पहले 
धड़कने तेज होने से पहेले
खुद से धोखा खाने से पहेले
अपनी आत्मा का सौदा करने से पहेले
तुम घर चले आना....


बचा-कुचा ईमान बेचने से पहेले
स्वाभिमान से समझौता करने से पहेले
सब कमाई गिरबी रखने से पहेले
कीमत इंसानियत की लगाने से पहेले
इंसान को दौलत से तोलने से पहेले
तुम घर चले आना....


शाम रात मे समां ने से पहेले
सुबह का सूरज डूबने से पहेले
अंधेरो का नशा चढ़ ने से पहले...
अनिद्रा से आँखे दुखने से पहेले
नींद से बेचैन जागने से पहेले
तुम घर चले आना......


सीने मे आँसू जमने से पहेले,
सपनो की बुनियाद हिलने से पहेले
प्रेमिका से नज़रे चुराने से पहेले
अतीत के यादों में तड़पने से पहेले
आनेवाला पल सताने से पहेले
तुम घर चले आना....


लोभ और लालच तुम्हे निगलने से पहेले
सख्त संकल्प सारे पिघल ने से पहेले
अपनी भूल को भूल जाने से पहेले
ग़लती को दूसरो से छुपाने से पहेले
दुर्वल का मज़ाक बनाने से पहेले
तुम घर चले आना...


सर पे घमंड चढ़ने से पहेले
ज़ुबान पे गुस्सा लाने से पहले
मर्यादा से बाहर बोलने से पहेले
प्रतिशोध के आग में जलने से पहेले
तुम घर आ जाना....


खुदकी ज़ुबान से खुद ही मुकरने से पहेले
ग़लत के सामने झुकने से पहेले
गद्दे को बाप बनाने से पहेले
अपने मैनेजर को मस्का लगाने से पहेले 
तुम घर चले आना....


मंदिर का द्वार भूलने से पहेले
बैश्या का घर ढूंढने ने से पहेले
सराब में गम भुलाने से पहेले
घरवालो की नाक कटाने से पहेले
तुम घर आ जाना......


बालों पे सफेदी मुस्कुराने से पहेले
झुरिया चहेरे पे शर्माने से पहेले
समय से नाता कट ने से पहेले
दाँत की अकड़ टूट ने से पहेले
कमर की घमंड छूट ने से पहेले
तुम घर आ जाना....


दौलत से दिल भरने से पहेले
दुनियादारी से मन उब्बने से पहेले
भोग से बैराग्य आने से पहेले
संसार से सन्यास लेने से पहेले
दबे कुचले प्राणो को भूलने से पहेले
आश्रित का हाथ छोड़ ने पहेले
तुम घर चले आना....



मन मे मलाल होने ने से पहेले
दया मे हिसाब रखने से पहेले
भक्ति को संदेह छूने से पहेले
इस भीड़ मे भगवान को भूलने से पहेले
तुम घर चले आना...

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अभिजीत ॐ  

पत्थर



पत्थर

पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
पत्थर भी पिघल जाए प्यार मे, सुने थे हम, 
मगर जब आज़माने चले तो कर बैठे एक पत्थर से प्यार


पिघलने को पत्थरअपना अपमान समझा
और अपने अकड़ के साथ खुश रहा......
तब हमें  पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला... 
तब हमें पथोरो का प्रचुरता का राज़ पता चला  की प्यार तो बेकार बदनाम हे ... गुनेहगार तो ये पत्थर ही हे....


वो पत्थर फिर कभी ना पिघला..
लैकिन हम नादाँ पिघल गये,  और पिघलते पिघलते एक दिन हम कुछ और बन गये. 
मगर कभी पत्थर ना बने..
मगर कभी पत्थर ना बने..

---*---

अभिजीत ॐ 

बहने दो आज उसे...


बहने दो आज उसे... 

रुख़ हवा का आज बदल ने दो
किस्मत को लकीरे लिखने दो
उसे रोको मत, उससे टोको मत
बस बहने दो उससे बहने दो
बस बहने दो उससे बहने दो


पिघल जाए तो उसे पिघलने दो
ढल जाए जैसे ढल ने दो
बिचरो में क्रांति आने दो
प्राण को प्रचंड होने दो
बड़ा कदम एक लेने दो
जो हो जाए आज होने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
आज बोलने दो उसे बोलने दो
आज बोलने दो उसे बोलने दो


ग़लती भी कभी होने दो
डर को सामने आने दो
गौर से डर को देख भी लो
साथ संघर्ष के जीना सिख भी लो
बिगड़ता हे तो बस बिडगने दो 
सब्र से उसे सुधरने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
बस करने दो उससे करने दो
बस करने दो उससे करने दो


जो अनदेखा हे उसे देख भी लो
अनकहा को बोलना सिख भी लो
नयापन से मूह मोड़ ना लो
अतीत से नाता कभी तोड़ भी लो
ख़ुदको रोको मत, ना रूको मत
अाजमालो बस आजमालो, 
अंजाने को कभी आजमालो


भविष्य में  झांक के कुछ देख भी लो
अतीत से कभी कुछ सिख भी लो
आशा का किरण खिलने दो
बंद दरवाजो को खोलने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
सपने देखने दो उसे देखने दो
सपने देखने दो उसे देखने दो


नये रिस्तो को कभी जोड़ने दो
बँधे हुए डोर खोलने दो
अपनो को पराया होने दो
अजनवी पे भरोसा होने दो
खुद जोड़ो मत, कुछ काटो मत
जिंदेगी को जाल बुनने दो
बस बुनने दो, उसे बुनने दो
जैसा बुनन्ता हे, जाल बुनने  दो


जो गुजर गया उससे गम कैसा
जो मुकर गया उससे क्या आसा
पुराने से जान छूटने दो,
नया सपना एक देखने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
आता हे तो बस आने  दो 
जाता हे तो बस जाने  दो


गिर गिरके उसे चलने दो,
हाथ का सहारा छोड़ने दो
मगर उतावला सा होना मत,
धीरज धरम कभी खोना मत,
कल्ली को हौले से खिलने दो
धीरे धीरे उड़ान भरने दो
उड़ने दो उसे उड़ने दो 
उड़ने दो उसे उड़ने दो


उसे मौन के मन को पढ़ने दो
खामोशी से बाते करने दो
अनसुने को उसे सुनने दो
खुद के आवाज़ का अंदाज़ा होने दो
विश्वास पे भरोसा छाने दो
उसे अंधेरो में चलना सिखने दो
कुछ सीखाना मत, कुछ बताना मत
बस खुद से ही उसे सुनने दो
और खुद से ही उसे सीखने दो


चाहत का बीज को मरने दो
घमंड को चूर होने दो
बैराग्य का ज्वाला जलने दो
बिकारो को भसम होने दो
दुआ का असर चढ़ने दो
बिचारों  में दृष्टि खिलने दो
कुछ नापना मत, कुछ तोलना मत
आज असीम को असीम से जुड़ने दो
पूर्ण को संपूर्ण होने दो....


बहने दो उसे बहने दो .... 
बहने दो उसे बहने दो..... 


रुख़ हवा का आज बदल ने दो
किस्मत को लकीरे लिखने दो
उसे रोको मत, उसे टोको मत
बस बेहने दो उसे बेहने  दो
बस बेहने दो उसे बेहने  दो.... 


---*---

अभिजीत ॐ 

अस्थाई

अस्थाई 


थोड़ा नशा उतर गयी
और थोड़ी सी हे बाकी
जाते जाते जो छोड़ गयी
यादें रह गयी बस बाकी

दो दिन पहले सुरू हुआ
और कल ही हो गया ख़तम
कोई उससे रिस्ता कहता
मे कहता उससे जीवन

दो दिन की ही मेहमान हे सारे
बस मौत को भूलगये है
बाहर से कुछ ढूंढ़ते ढूंढ़ते
जैसे जीना भूल गाए हे

कुछ ना रहेगा हमेशा
जो रह जाए उसे ब्रह्म मानो
बस नेक करम कुछ करलो
चाहे पथर या भगवन मानो

---*---

अभिजीत ॐ 

पुनर्जीवन

पुनर्जीवन


टूट गया वो टूट गया
जैसे वक़्त हाथ से छूट गया
फिर हार गया अपने मन से वो
जैसे खुदके रूह खुदी से रूठ गया

फिर आया पतझड़ हुआ सब बेरंग
वापस आया सन्नाटा मे हुआ निसंग 
मे जिससे डरताथा फिर वही हुआ
थोड़ा जगा मगर फिर सो गया

टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया

लगा ये जग निरर्थक और ये जीवन ब्यर्थ 
जैसे कोई ना अपना, सिर्फ जिंदा हे स्वार्थ 
जैसे घुटन मे जिया फिर मर गया
ना पाया समंदर, प्यासा लौट गया

टूट गया वो टूट गया .....जैसे वक़्त हाथ से छूट गया

मगर एक दिन जब सूरज उगा
खिली जिंदेगी का फूल और एक उम्मीद जगा
मर मर के जीना जैसे सिख लिया 
अतीत के नींद से भविष्य जाग गया

ना लगे असंभव, असाध्या साध दिया
खुद खड़ा हुआ सबको जिंदा किया 
टूटा मगर फिर बन गया ..... 
मानो तकदीर खुद से जैसे लिख दिय

---*---

अभिजीत ॐ 

सहेलादे ज़रा प्यार से




सहेलादे ज़रा प्यार से

सदियों से उसका मन हे घायल
सहेलादे ज़रा प्यार से
उससे बदल ने की मत कर जल्दी
समझ ने दे आराम से

बुलबाने की उम्मीद रखने से पहेले
ज़रा बुदबुदाने दे उसे 
भले ना समझ पर सबर से सुन ले
और सहेलादे ज़रा प्यार से

थक जाए जब वो, उसे बाहों मे लेले
सुला दे लोरी कोई गुनगुनाके
वो आँखे जब खोले तू मुस्कुरादे 
और सहेलादे ज़रा प्यार से

वो ज़िद्द पकड़ ले तो धीरज खो मत देना
सुलझा देना ज़रा जतन से
वो घायल ज़रूर हे, पर दिल से हे राजा
बस सहेलादे उसे प्यार से

तन से हे कमजोर और मन से हे बिखरा
रोने दे आज उसे जी भरके
रोते रोते जब घुटन हो उसे
सहेलादे उसे प्यार से

तू रो सके तो उसके साथ मे रोले
मन तेरा भी हल्का हो जाए
तू समझ सके तो, गाँठ सहज से खोले
और वो गोद मे तेरे सो जाए


तेज दौड़ ने की सलाह देने से पहेले
देख खुद दौड़ मे तू क्या खोया हे
सदियो से प्यासा, पूरा होने को आया
जागा मत, वो हाल मे ही अभी सोया हे

जिंदगी भर था वो घुटन मे जिया
घुट घुट कर कबसे चल दिया
आज उससे गहरा साँस भरने दे
जितना करना था वो बस कर लिया


आज हे नाज़ुक, कल सख्त हो जाए
बस दुआ का असर होने दे
पैर लड़खड़ाए पर कोशिश हे जारी
एक बार बस उससे चलने दे


बदल ने की उसे मत कर जल्दी
समझ ने दे आराम से
सदियों  से उसका मन हे घायल
सहेलादे ज़रा प्यार से

---*---

अभिजीत ॐ 

Saturday, September 30, 2017

Slow Down

Slow Down

You see many suffer in every moment,
And many sufferings you can't see.
You hear them screaming aloud and long,
But, you missed their meaning in your restless being.


You respond to their helpless calls,
But, your anxious voice couldn't soothe their sob.
You extend your hand with all good intent,
But, its trembling rhythm could not feel their love.


Why you not go little slower, 
and listen to the songs that are feeble and subtle.
Nothing dies, and nothing will die, 
It all goes along in the same cycle,


You see it in parts and react very fast,
Patiently someday absorb the whole.
Witness your breath and feel the breeze,
Rise in the moment, never let it fall.


---*---




While witnessing the moment,

by 
Abhijit Om